लेखनी कहानी -30-May-2023 एक थी साक्षी
"मम्मी आज मेरे लिए खाना मत बनाना । आज मेरी फ्रेंड का बर्थ डे है , मैं उसमे जाऊंगी और थोड़ा लेट भी आऊंगी , परेशान मत होना" । साक्षी तैयार होने के लिए अपने कमरे में चली गई ।
साक्षी ने अपनी वार्डरोब से एक नई ड्रेस निकाली । इस ड्रेस को अभी दो चार दिन पहले ही तो लाई थी वह । खास आज के दिन के लिए । आज उसके 'लव' का जन्म दिन है तो आज उसे सज धज कर जाना ही था । उसका प्यार साहिल के जन्म दिन का वह कब से इंतजार कर रही थी ? उसने वह ड्रेस पहनी और परफ्यूम लगाया तो वह खिल उठी थी । कोई राजकुमारी सी लग रही थी वह । उसने मन ही मन कहा "साक्षी शर्मा , आज तो साहिल का कत्ल होकर रहेगा । इस ड्रेस में देखने के बाद वह जिंदा कैसे बचेगा" ? उसके अधरों पर एक मुस्कान खेलने लगी । बड़ी कातिल मुस्कान थी वह । साहिल के बचने के कोई चांस नहीं थे अब ।
तैयार होकर जब वह बाहर निकली तो उसकी मम्मी उमा शर्मा ने उसे टोका "इतनी बन संवर कर कहां जा रही है तू ? कौन सी सहेली का बर्थ डे है जो इतना तैयार होकर जा रही है ? कोई 'सहेला' का बर्थ डे तो नहीं है ना" ? उमा शर्मा की निगाहें साक्षी को घूरने लगीं ।
"मम्मी, आप तो हमेशा ही शक करती हो मुझ पर । ऐसा कुछ नहीं है । मेरी सहेली निशा का बर्थ डे है, बस वहीं जा रही हूं । उसने अपनी चार पांच सहेलियों को ही बुलाया है बस । मैं जल्दी लौटने का प्रयास करूंगी फिर भी थोड़ी देर हो जाए तो गुस्सा मत करना । आप तो दुनिया की बेस्ट मम्मी हो ना" ? साक्षी ने गुगली फेंक दी । इस गुगली के सामने कौन सी मम्मी टिक पाती है ?
साक्षी अपनी एक्टिवा पर बैठकर तितली की तरह उड़ चली । अभी वह 18 वर्ष की नहीं हुई थी लेकिन वह प्यार की पढाई पढने लग गई थी । साहिल बड़ा अच्छा लगा था उसे । वह जब तिलक लगाकर आता था तब बहुत जंचता था । उसके हाथ में कलावा तो हमेशा बंधा ही रहता था । उसने अपना पूरा नाम साहिल शर्मा बताया था । इसीलिए वह उसे दिल दे बैठी थी ।
थोड़ी दूर चलते ही उसे रास्ते में साहिल मिल गया । उसने एक्टिवा रोकी और साहिल आगे बैठकर एक्टिवा चलाने लगा था । उन दोनों का प्लान था कि पहले चांदनी चौक में स्थित 'सिद्धेश्वर मंदिर' जाकर भगवान का आशीर्वाद लेंगे फिर एक पब में जाकर डांस करेंगे और फिर केक काटकर डिनर करेंगे । साक्षी प्यार की गहराइयों में खोने लगी ।
अचानक उसे लगा कि यह तो चांदनी चौक जाने वाला रास्ता नहीं है । उसने साहिल से कहा "ये किधर ले जा रहे हो साहिल ? ये तो सिद्धेश्वर मंदिर का रास्ता नहीं है" । साक्षी थोड़ी घबराते हुए बोली
"हां, ये सिद्धेश्वर मंदिर का रास्ता नहीं है । हम वहां बाद में चलेंगे पहले यहां एक बहुत पुरानी मस्जिद है , उसमें चलते हैं" साहिल हंसते हुए बोला
"मस्जिद ! लेकिन मस्जिद क्यों" ?
"देखो साक्षी , मैं एक धर्मनिरपेक्ष आधुनिक खयालों का आदमी हूं । मैं मंदिर मस्जिद दोनों को एक मानता हूं इसलिए पहले मस्जिद में जाकर कुरान पढता हूं फिर मंदिर में जाकर आरती कर लेता हूं" ।
अब साक्षी को कुछ गड़बड़ सी लगी । वह घबराते हुए बोली "पर तुमने पहले तो ऐसा कुछ नहीं कहा था कि तुम कुरान भी पढते हो और आरती भी करते हो ? पहले गाड़ी रोको साहिल, एक बार बैठ कर बात करते हैं । उसके बाद तय करेंगे कि क्या करना है" ? साक्षी चिंतित होते हुए बोली ।
साहिल पर साक्षी की बात का कोई असर नहीं हुआ । वह एक्टिवा चलाता ही रहा । उसने स्पीड और बढा दी थी ।
"गाड़ी रोको साहिल, नहीं तो मैं चिल्ला पड़ूंगी" । अबकी बार साक्षी जोर से चिल्ला कर बोली ।
साहिल ने तमतमाकर वहीं बीच सड़क पर ही गाड़ी रोक दी और कहा "बोलो क्या बात करना चाहती हो तुम" ? उसकी आंखें गुस्से से लाल हो रही थी । साक्षी ने उसका यह रूप पहली बार देखा था इसलिए वह सिर से लेकर पांव तक सिहर गई । उसने हिम्मत करके पूछा "हम मस्जिद क्यों जा रहे हैं ? मैं नहीं जाऊंगी मस्जिद" ।
"चलना पड़ेगा । तुम्हारे पास और कोई विकल्प है ही नहीं" । साहिल फीकी हंसी हंसते हुए बोला ।
"क्यों विकल्प क्यों नहीं है ? मैं मस्जिद क्यों जाऊं" ?
"तुम मुझसे प्यार करती हो या नहीं" । साहिल ने साक्षी की बात का जवाब दिये बिना ही अपनी ओर से सवाल दाग दिया ।
"हां, करती हूं तुमसे प्यार"
"मुझसे शादी करना चाहती हो" ?
"हां, शादी भी करना चाहती हूं"
"तो फिर तुम्हें मस्जिद चलना ही होगा और कुरान पढनी ही होगी" साहिल उसे पकड़कर गाड़ी पर बैठाने लगा ।
"शादी करने के लिए मस्जिद जाना और कुरान पढना क्यों जरूरी है" ? इस बार साक्षी गुस्से में बोली
इस बात पर साहिल को गुस्सा आ गया और उसने अपनी पैंट की जेब से एक चाकू निकाल लिया और बोला "तुझे मस्जिद इसलिए जाना होगा कि तू पहले काफिर से मोमीन बनेगी । मस्जिद जाएगी । कुरान पढेगी तब तू मेरे साथ निकाह के योग्य होगी । समझी ! मेरा नाम साहिल खान है और मेरे बाप का नाम सरफराज खान है । अब पता चल गया तुझे कि मैं एक सच्चा मुसलमान हूं । तुझे अब मस्जिद जाना ही होगा । मेरा जन्म दिन वहीं मनेगा , समझी" ! साहिल उसे गाड़ी पर बैठाने लगा ।
साक्षी को तो जैसे सांप सूंघ गया । वह तो साहिल को साहिल शर्मा समझ रही थी । उसका तिलक और कलावा उसे हिन्दू बता रहे थे । यह माजरा क्या है ? वह दहाड़ते हुए बोली "जब तुम मुसलमान थे तो बताया क्यों नहीं और ये तिलक और कलावा किसलिए ? तुम मुझे साहिल शर्मा बनकर क्यों मिले" ?
"तुझे अपने प्रेम जाल में फंसाने के लिए ये सब नाटक करना पड़ा था । मैं तेरे चक्कर में उस गंदे मंदिर में भी गया जहां किसी के लिंग की पूजा भी होती है । क्या क्या नहीं किया है तुझे पाने के लिए मैंने" ? साहिल पर खून सवार हो गया था
थोड़ी देर साक्षी सोचती रही । फिर उसने कहा "आज से तेरा मेरा प्यार खत्म । मुझे नहीं बनना मुसलमान । तू अपने रास्ते जा और मैं अपने रास्ते चली जाती हूं । अब ठीक है" ? साक्षी उससे पीछा छुड़ाना चाह रही थी ।
"ठीक क्या है साली ? तूने मुझे समझ क्या रखा है ? मैं कोई तेरा लौंडा हूं जो तेरा हुक्म मानूंगा ? तुझे मेरे साथ चलना ही होगा नहीं तो मैं तेरी बोटी बोटी काट दूंगा" । साहिल किसी खूंखार जानवर की तरह गुर्राया और उसने चाकू साक्षी की गर्दन पर रख दिया ।
यह सारा ड्रामा दिल्ली शहर की भीड़ भरी सड़क पर चल रहा था । भीड़ इकठ्ठी भी हो गई थी । भीड़ में से एक नौजवान ने हिम्मत करके साक्षी को बचाने की कोशिश भी की कि इतने में साहिल जोर से चिल्लाया
"खबरदार जो किसी ने आगे बढने की कोशिश की । अगर किसी ने एक कदम भी आगे बढाया तो उसे पहले काटूंगा, बाद में इस छोकरी को । चलो, भागो यहां से" । चाकू लहराते हुए साहिल को देखकर भीड़ खिसक गई ।
साक्षी ने साहिल के साथ जाने से मना कर दिया तो साहिल ने उसे एक्टिवा पर पटक कर उस पर चाकू से ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिये । एक दो तीन नहीं , पूरे 22 वार किये थे साहिल खान ने साक्षी शर्मा पर । साक्षी की अंतड़ियां बाहर आ गयीं । चाकू मुड़कर टेढा हो गया । उसके बदन का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा जहां चाकू नहीं लगा हो । साक्षी नीचे गिर पड़ी । साहिल वहां पर भी चाकू मारता रहा । साक्षी ने वहीं दम तोड़ दिया ।
साहिल पर तो अपने मजहब का भूत सवार था , इतनी जल्दी कैसे उतरता ? उसने इधर उधर नजर दौड़ाई । उसे पास ही एक विशाल पत्थर नजर आया । लगभग दस पंद्रह किलो का पत्थर था वह । साहिल ने वह पत्थर उठाया और पूरी ताकत से उसने वह पत्थर साक्षी के मुह पर दे मारा । साक्षी का मुंह टूटकर चकनाचूर हो गया था । साहिल की हैवानियत अभी खत्म नहीं हुई थी । उसने उसी लहुलुहान पत्थर को फिर से उठाया और इस बार उसके सीने पर मारा । सारी पसलियां टूट गई थी साक्षी की । उसने एक बार और पत्थर उठाया और इस बार उसकी जांघों के बीच में मारा । अब उसे चैन मिल गया था । उसने अपना हाथ साक्षी के दुपट्टे से पोंछे जो पहले ही गिरकर अलग पड़ा हुआ था । उसके बाद साहिल एक सांड की तरह गुर्राता हुआ चला गया ।
अब कोर्ट कचहरी सब कुछ होगा । थोड़ी बहुत नौटंकी भी होगी । कुछ साबित नहीं होगा । यदि कुछ साबित भी हो जाएगा तो सुप्रीम कोर्ट के जजों का मानवतावाद जाग जाएगा और वे एक "अबोध मासूम" को दो चार साल की सजा देकर छोड़ देंगे । केरल स्टोरी को फर्जी बताने वालो , ध्यान से सुन लो, एक दिन तुम्हारी साक्षियों के साथ भी यही होगा । अभी भी वक्त है, संभल जाओ वरना फिर पछताने का मौका भी नहीं मिलेगा ।
श्री हरि
30.5.23
Babita patel
13-Jul-2023 05:29 PM
very nice
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KALPANA SINHA
03-Jul-2023 01:34 PM
awesome story
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madhura
25-Jun-2023 11:44 AM
good one
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